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दशहरा: पुरानी प्रथा होगी बंद, रावण के साथ नहीं जलेंगे कुंभकरण और मेघनाद के पुतले

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रामलीला में रावण पुतला दहन करने का इतिहास हमारे देश में काफी पुराना है. एक प्रकार से देखा जाए तो यह बुराई को खत्म करने का प्रतीक है. लेकिन उत्तर प्रदेश में इस बार ऐशबाग रामलीला समिति ने एक ऐसा फैसला लिया जो लोगों के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है, तो आइए जानते हैं उस फैसले के बारे में..

 
रावण का वध करते हुए राम
उत्तर प्रदेश की ऐशबाग रामलीला समिति ने इस बार रावण के पुतला दहन को लेकर एक अनोखा फैसला लिया है जिसमें कहा गया है कि इस बार रावण के पुतले के साथ कुंभकरण और मेघनाद के पुतले नहीं जलाए जाएंगे. समिति के आयोजकों ने इस फैसले का कारण बताते हुए कहा है कि सभी रामायण ग्रंथों में उल्लेख है कि कुंभकरण और मेघनाद ने रावण को भगवान राम के खिलाफ युद्ध लड़ने से रोकने की कोशिश की थी, लेकिन जब रावण ने उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्हें युद्ध में भाग लेना पड़ा था.

इस वजह से नहीं जलाए जाएंगे पुतले
रामलीला समिति का कहना है कि रामचरितमानस और रामायण के अन्य दूसरे संस्करणों से पता चलता है कि रावण के बेटे मेघनाद ने उससे कहा था कि भगवान राम विष्णु के अवतार हैं और उनके खिलाफ युद्ध न लड़ें. 

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वहीं दूसरी ओर रावण के भाई कुंभकरण ने सीता के अपहरण को लेकर कहा था कि सीता और कोई नहीं जगदंबा माता हैं अगर वह उन्हें मुक्त नहीं करेगा तो अपना सब कुछ खो देगा. इन्हीं तर्कों के आधार पर इस बार ऐशबाग रामलीला में मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाएंगे.

इतने साल पुराना है ऐशबाग रामलीला का इतिहास
ऐशबाग रामलीला के इतिहास की बात की जाए तो यह काफी पुराना है. माना जाता है कि ऐशबाग रामलीला की शुरुआत 16वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा की गई थी और पुतले जलाने की परंपरा लगभग 300 साल से भी ज्यादा पुरानी है. यही नहीं ऐशबाग रामलीला से ही देश में रामलीला की शुरुआत मानी जाती है.

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