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Mohammed Rafi की प्रेरणा जरूर थी, पर Mahendra Kapoor ने बनाई अपनी बड़ी पहचान

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50 का दशक था. अमृतसर में पैदा हुआ एक लड़का मायानगरी गया. मकसद था फिल्मों में गाना. आदर्श थे- मोहम्मद रफी. अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए इस लड़के ने मुंबई पहुंचने के बाद बड़ी मेहनत की. कई दिग्गजों से तालीम ली. महेंद्र कपूर के लिए सबसे बड़ा मौका साबित हुआ नौशाद साहब से हुई मुलाकात. महेंद्र कपूर को नौशाद साहब ने अपनी फिल्मों में गाने का मौका दिया. कहते हैं कि जब नौशाद साहब ने महेंद्र कपूर से पूछा कि आपकी प्रेरणा कौन हैं तो उन्होंने तुरंत कहा- मोहम्मद रफी.

मोहम्मद रफी और नौशाद साहब के रिश्ते बहुत करीबी थे. इसलिए उन्होंने महेंद्र कपूर को रफी साहब से मिलवा दिया. रफी साहब और महेंद्र कपूर की उम्र में ज्यादा फर्क नहीं था, लेकिन रफी साहब ने महेंद्र कपूर को फिल्मी संगीत की बारीकियां भी बताईं. इससे पहले महेंद्र कपूर ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पंडित हुस्नलाल, पंडित जगन्नाथ, उस्ताद नियाज अहमद खां, उस्ताद अब्दुल रहमान खां और पंडित तुलसीदास शर्मा से ली ही थी. लिहाजा, वो अपनी जगह मजबूत करते चले गए.

आधा है चंद्रमा रात आधी

इससे पहले भी महेंद्र कपूर ने दिन रात रियाज किया था, संगीत साधना की थी. जिससे उन्हें पहचान मिलने का सिलसिला शुरू हुआ था. ये किस्सा बड़ा दिलचस्प है. मर्फी रेडियो कंपनी ने नए कलाकारों की खोज में एक प्रतियोगिता की थी. इसमें महेंद्र कपूर जीते. इसी के बाद उन्हें सी. रामचंद्र के म्यूजिक डायरेक्शन में फिल्म नवरंग में गाने का मौका मिला. वो गाना भी जबरदस्त हिट हुआ. जिसके बोल थे- आधा है चंद्रमा रात आधी. भरत व्यास के लिखे इस गाने में आशा भोंसले ने महेंद्र कपूर के साथ गाया था. ये फिल्म 1959 की है, 60 साल से ज्यादा का वक्त बीत गया आज भी ये गाना मन को तरोताजा कर देता है.

एक दूसरे का पर्याय है आजादी का जश्न और महेंद्र कपूर की आवाज

महेंद्र कपूर ने बतौर गायक तमाम हिट गाने गाए, बेशुमार प्यार हासिल किया, लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि बनी देशभक्ति के वो गीत जिन्हें हम आज भी सुनते और सराहते हैं. 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसी ऐतिहासिक तारीखों पर महेंद्र कपूर के गाने राष्ट्रीय पर्व की पहचान बन गए. आज भी ऐसे मौकों पर सुबह-सुबह कानों में महेंद्र कपूर की आवाज गूंजती है. ‘मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरे मोती, ‘है रीत जहां की प्रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं, भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं…,

आप मनोज कुमार के साथ देश भक्ति के गीत जोड़ें, तो जो आवाज़ याद आती है, वो महेंद्र कपूर की ही होती है. मनोज कुमार महेंद्र कपूर को अपने लिए भाग्यशाली भी मानते थे. इसके पीछे भी एक बड़ी दिलचस्प कहानी है. 1968 में एक फिल्म आई-आदमी. फिल्म में संगीत नौशाद का था. नौशाद साहब ने इस फिल्म का एक गाना मोहम्मद रफी और तलत महमूद से गवाया था. इसी गाने में एक लाइन थी- ओ देने वाले तूने तो कोई कमी ना की, किसको क्या मिला ये मुकद्दर की बात है. ये लाइन मनोज कुमार पर फिल्माई जानी थी.

मनोज कुमार को जब पता चला कि फिल्म में गाने का ये हिस्सा जो उन पर फिल्माया जाने वाला है, वो तलत महमूद ने गाया है तो वे थोड़ा परेशान हुए. उन्होंने नौशाद साहब से इच्छा जताई कि ये गाना मोहम्मद रफी के साथ महेंद्र कपूर से गवाया जाए. नौशाद ने मनोज कुमार की इस गुजारिश को स्वीकार कर लिया. रफी साहब की आवाज वाला हिस्सा दिलीप कुमार पर फिल्माया गया और महेंद्र कपूर की आवाज वाला हिस्सा मनोज कुमार पर. ये गाना महेंद्र कपूर के दिल के भी काफी करीब था क्योंकि इसमें वो अपने गुरू समान मोहम्मद रफी के साथ गायकी कर रहे थे.

भुलाए नहीं जा सकते महेंद्र कपूर के कई नगमे

आजादी के गानों के अलावा भी महेंद्र कपूर ने कई हिट गाने गाए. ‘चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों’ हो या ‘नीले गगन के तले… महेंद्र कपूर की आवाज ने हर गाने को एक पहचान बख्शी. उन्हें पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड भी ‘चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनो’ के लिए ही मिला. उपकार फिल्म के ‘मेरे देश की धरती’ के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला था. अपने करियर में बी.आर. चोपड़ा और मनोज कुमार के वो पसंदीदा गायक रहे. ये उनकी गायकी की विविधता ही थी कि बीआर चोपड़ा के सीरियल महाभारत में भी उनकी आवाज थी.

महेंद्र कपूर ने गुजराती, पंजाबी, भोजपुरी और मराठी में भी गाने गाए. उन्होंने खान साहिब अब्दुल रहमान खां के लिए कुछ ठुमरियां भी गाईं. गालिब की गजलों के लिए भी उनकी काफी चर्चा होती है. महेंद्र कपूर आज भी बेहद संवेदनशील और विनम्र कलाकार के तौर पर याद किए जाते हैं.

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